Saturday, July 21, 2012

तुम भी ना एक अजीब शै हो
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सिर्फ़ एक मुलाक़ात
छोटी सी...
तुम्हारी कुछ तस्वीरें
कुछ विचार
और हाँ फ़ोन पर चंद बातें
कुल जमा तीन बार
और लो हो गई
एक धरोहर
सारी उम्र की

मुलाक़ात चाहे छोटी ही सही इतनी बदहवासी में भी हमने
साँसों का संगीत सुना
हां, इस बीच तुमने
इक नज़र देखा भी था मुझे
कनखियों से तुम्हें देखती
उन आँखों के नूर से रौशन हुई मैं
उजली-उजली सी
धुली-धुली सी

मिल जाता है हर बार
कुछ न कुछ तुम्हारी छवियों में
इस बार
पलंग के पास मेज़ पर
पेन, डायरी, किताबें और दवाइयां
और वो भरा-भरा ख़ाली सा कमरा

ना जाने किस संवाद में एक बार
पुकारा भी तो था मेरा नाम तुमने
तुम्हारे अनाहत से होता हुआ
विशुद्धि से निकलता मेरा नाम
शुद्ध
सुगन्धित
पवित्र हो गया
और इस तरह हमने एक दूसरे को
दोनों चक्रों से छू भी लिया

सुनो,
उसी छुअन की कसम खाकर कहती हूं
हमारी बातों में वो अबोली..अपरिभाषित बातें
ना जाने क्यूंा कभी-कभी नाकाफी लगती हैं
ज़िन्दगी के लिए

पहले से छलकी हुई मैं कुछ और भर गई
कि रीत गई और कुछ...
अब बस
इतनी-सी तमन्ना है कि
हर जनम बस इतनी सी गुंजाइश देना
मेरे मौला कि किसी तौर तुमसे
जुड़ी रह सकूं मैं...