Sunday, March 24, 2013

चलो मान जाओ ना...

तुम्हें हक़ है
कि तुम दिल दुखाओ
और दुखाओ
आज तुम न मानना
तब तक
जब तक तुम्हें मनाते-मनाते
मैं न उदास हो जाऊं
रुलाई न फूट पड़े मेरी

उफ्फ् ये नाउम्मीदी
खुद पे इतना भी ऐतबार नहीं
कि कह सकूं कि
अब गलती नहीं होगी
चलो यूँ मान लो
कि अब बहुत दिनों बाद होगी
जैसे आश्विन के बाद आता है सावन

Friday, March 15, 2013

काश मैं तुम्हारी बेटी होती...

काश मैं तुम्हारी बेटी होती
तो तुम
मुझे भी फ्रॉक पहनाते
चोटी बनाते
गोद में उठाते
मेरी अठखेलियों में खो जाते
मेरी नाराज़गियों पर
मुझे फुसलाते...बहलाते

अभी-अभी
मेरी आवाज सुनकर
माथे पे बिखरे बालों को
जिस तरह कानों के पीछे संवारा तुमने
और फिर अपने ही हाथों को चूम लिया
यकीन मानों इस इक पल में
ये ख्वाब बिल्कुल ही सच सा लगा