Monday, September 24, 2012

चमकते तारे...

मेरी आँखों में चमकते तारे
तू न आया तो बरस जाएँगे
तू जो आया तो थम न पाएँगे
इनकी फितरत ही कुछ ऐसी है
ये हैं तो मेरे...पर हैं तेरे लिए
रोज़ चले आते हैं ये सांझ ढले
रात भर पलकों पे डब-डबाते हैं
सुबह होते ही छलक जाते हैं
खाली कर जाते हैं निगाहें मेरी
तेरे ख्वाबो के तलबगार हैं ये

Saturday, September 22, 2012

ओ ! ख्‍व़ाबीदा शख्‍स़



सुनो !
कौन हो तुम ?
अजनबी ?
तुम अंजान हो सिर्फ इसलिए न कि
तुम्हारा कोई नाम
कोई चेहरा नहीं ?
तुम्हें कभी देखा नहीं
सुना...छुआ नहीं ?


है तो अजीब लेकिन सच है
रोज़ आते हो ख्यालों में
हर बार अकेला छोड़ जाने के लिए
कभी मिले नहीं मगर
हर बार बिछड़ जाते हो ?

लेकिन सुनो !
तुम्हें इतना और इस क़दर
सोचा है मैंने कि
अब कहीं से नहीं लगता कि
अंजान या कि कोई अजनबी हो तुम

कुछ ख्‍व़ाबीदा शख्‍स़ होते हैं अक्‍सर
बिन चेहरे और पहचान के
जो हमेशा लगते हैं
बिल्‍कुल ऐसे
जैसे तुम...

Friday, September 21, 2012

शुक्रिया !....दोस्त....!

 शुक्रिया !....के तुम मेरे दोस्त हो !

इस दुनिया में जो किसी से न कहा जा सके वो तुम से कहा जा सकता है
तुमसे कुछ कहना जैसे ख़ुद से ही बातें करना है
तुम दिल में रहते हो इसीलिए दिल की बातें पहले ही जान लेते हो
सुकून के दो पलों को इसी एक रिश्ते की दरकार है
ममता का आँचल हो या परवरिश का साया
बचपन की शरारत हो या सहारा देते कंधे सहलाते हाथ
ज़मीं से लेकर आसमान तक रिश्तों की कड़ी में
हर रिश्ता अंततः चाहत रखता

है दोस्ती की
जी चाहता है सारी दुनिया को बता दूं कि तुम मेरे दोस्त हो
दोस्ती का हनीमून पीरियड जो चल रहा है...और यूँ भी
मित्रता में होना भी, प्रेम में होना ही तो है !

Tuesday, September 18, 2012

चाहत

हसरत तुम्हें जी भर देख पाने की
पूरी न हो जाए कभी कि फिर
दिल न तरसे तुम्हारी एक झलक को

तुम्हें छूने की चाह रह जाए अधूरी ही कि
छूकर भी तुम्हें छूने की चाहत की
शिद्दत कम न हो कभी

मिलन का छोटा सा वो पल ही भरपूर है
मन की ये अतृप्ति यूँ तृप्त न हो जाये कहीं

कि फिर कोई प्यास ही न रहे बाकी

आत्मा के तल पर तुम्हे महसूस करते
रोम रोम भीग कर पिघलता चला जाये
तुम्हें टूटकर चाहने के लिए
कितना तो ज़रूरी है अधूरी इच्छाओं का पूरा न हो सकना