सुनो !
कौन हो तुम ?
अजनबी ?
तुम अंजान हो सिर्फ इसलिए न कि
तुम्हारा कोई नाम
कोई चेहरा नहीं ?
तुम्हें कभी देखा नहीं
सुना...छुआ नहीं ?
है तो अजीब लेकिन सच है
रोज़ आते हो ख्यालों में
हर बार अकेला छोड़ जाने के लिए
कभी मिले नहीं मगर
हर बार बिछड़ जाते हो ?
लेकिन सुनो !
तुम्हें इतना और इस क़दर
सोचा है मैंने कि
अब कहीं से नहीं लगता कि
अंजान या कि कोई अजनबी हो तुम
कुछ ख्व़ाबीदा शख्स़ होते हैं अक्सर
बिन चेहरे और पहचान के
जो हमेशा लगते हैं
बिल्कुल ऐसे
जैसे तुम...
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