Thursday, June 27, 2013

कोई आहट, कोई जुम्बिश, कोई दस्तक नहीं मिलती,
हमारे शहर-ए-वीरान में, बहोत फ़ुरसत का मौसम है
दिल पे जो गुज़रती है.........दिया करते हैं
तार अश्कों के उसकी ख़बर लगातार मुझे

Monday, June 10, 2013

इक अजीब सी धुन है....गुनगुनाते हुए बहुत पहचानी सी लगती है ....यूँ याद नहीं रहती .....अनायास ही मन गुनगुनाता है ...और फिर उदास हो जाता है ....
अश'आर के परदे में हैं किससे मुख़ातिब...वो समझ तो गए होंगे...क्यूँ नाम लिया जाए...
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी सीने पे झूलता लॉकेट
उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से
सीधा करता रहूँ उसको

मुझको इतने से काम पे रख लो...

जब भी आवेज़ा उलझे बालों में
मुस्कुराके बस इतना सा कह दो
आह चुभता है ये अलग कर दो

मुझको इतने से काम पे रख लो....

जब ग़रारे में पाँव फँस जाए
या दुपट्टा किवाड़ में अटके
एक नज़र देख लो तो काफ़ी है

मुझको इतने से काम पे रख लो...

'प्लीज़' कह दो तो अच्छा है
लेकिन मुस्कुराने की शर्त पक्की है
मुस्कुराहट मुआवज़ा है मेरा

मुझको इतने से काम पे रख लो

- गुलज़ार -
तुम्हारी बात कोई
जी को इस क़दर बुरी लगी
इस बार जाने क्या हुआ
बताने को जी नहीं किया
बेईमान कह लो...
इत्ते दिनों
इत्ता तरसाया
मेहरबाँ हुए भी
तो आधी रात को
आए..बरसे और चले भी गए
हम नींद की आगोश में रहे
अब..जब आँख खुली है तो
बालों को प्यार से सहलाती
मुलायम हवा है और
चेहरे को चूमती नन्हीं बूँदें

भीगी सुन्दर शुभ सुबह मुबारक...

(* हमारी तरफ रात में बरसे हैं बादल )
कोई ये कैसे समझाए कि
कितना ज़रूरी होता है
बातों का ठीक से ख़त्म होना
कुछ इस तरह से अंत हुआ बातों का कि उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ...
ख़ैर ...................शुभ- रात्रि!:)
अब प्यार बारिश को बूंदों से किया.......मिलेगा तो ख़ाक ही में ना......?

Tuesday, May 21, 2013

- आओ कभी यूँ भी मेरे पास के.....आने में लम्हा और जाने में ज़िन्दगी गुज़र जाए.....

- ऐसे मौसम में यूँ जुदा रहना........कुफ़्र है और कुछ नहीं साहिब !

( हमारी तरफ बिन मौसम बादलों ने मौसम ख़ुशगवार कर दिया है...:))


लफ़्ज़ों का ताना-बाना बुनने वाला जुलाहा सारी उम्र ख़्वाब बुनता रहा...और खुद किसी का ख़्वाब न बना...

-अमृता प्रीतम ....साहिर के लिए-


- अच्छे लोगों को तो सभी पसंद करते हैं....है कोई तलब'गार के बहुत बुरे हैं हम....
तुम्हें यूँ मजबूर देखना अच्छा नहीं लगता
यूँ पलकें बार-बार झपकाना अच्छा नहीं लगता
जुड़ाव कोशिशों से नहीं हो सकता
फिरभी तुम्हारा मेरी कोशिशों पर
आँख मूँद लेना अच्छा नहीं लगता...
सुकून का एक लम्हा भी मयस्सर नहीं....,
मुहब्बत को सुलाते हैं तो यादें जाग जाती हैं
मुसलसल गुज़रती ज़िन्दगी
और रफ़्तार उसकी
यादों में उभरते हैं कभी-कभी
अतीत के कुछ मिटे मिटे से चित्र
एक काफिला सा रुकता है आके
आरज़ूओं के मरुस्थल में
शायद अनजाने ही
इन धुंधली मिटती यादों के बीच
कोई ख्‍वाहिश हमेशा
अपनी जगह कायम रहती है ताउम्र...
मौसम-ए-गुल में ख़ैर हो दिल की....दर्द उगते हैं इन महीनों में....

बे-क़रार बातें...


ख़लाओं में भटकती सी
बातें बे-क़रार हैं
सुने जाने के इंतज़ार में
यूँ नहीं है कि सुनते नहीं हो तुम
बेशक़ सुनते हो लेकिन आँखों से नहीं सुनते
किसी और दुनिया में हो तुम जैसे
और सब कुछ कहकर भी
बाक़ी रह जाता है हलक में बहुत कुछ
सुन लो ना वो सारी अनर्गल बातें
और यूँ सुनो कि क़रार पा जाएं
बे-क़रार बातें
जैसे समंदर सुनता है
चांद की सदाएं
और चांद रात को आता है
दोनों को क़रार

साझा सन्देश...

साझा सन्देश...

ये कविता बे-रंग ही होती
जो यूँ न रूठते तुम
और दिल महसूस न करता कि
तुम क्या हो मेरे लिए
क्या ये संभव है कि
लिखा जाए इक साझा सन्देश
इक पाती, इस रिश्ते के नाम
और पढ़के उसे
दोनों रोएँ थोड़ी-थोड़ी देर ...
इश्क़ की बनियागिरी ...

''हर बात पे रंजिशें हर बात पे हिसाब
गोया हमने इश्क़ नहीं नौकरी कर ली ''

* सन्डे स्पेशल !:))))

प्रतिस्पर्धा...

प्रतिस्पर्धा...
कहते हैं इसी का ज़माना है...
ये जितनी विकास के लिये आवश्यक है...उतनी ही कष्टकर भी है...
जाने क्यूँ हमें अच्छी नहीं लगती...
शायद इसलिए कि दो अलहदा चीज़ों की तुलना संभव ही नहीं
अब गुलाब की कमल के फूल से कैसी तुलना भला...??
हाँ खुद से खुद की तुलना संभव है...बेहतरी के लिए खुद की खुद से स्पर्धा होनी चाहिए...
क्यूंकि हर इक शै इस दुनिया की इक दूसरे से अलग है....यूनीक है...अनन्य है....
कम अस कम इस एक बात पर हर कोई खुद पर फ़क्र कर सकता है कि
उस जैसा इस पूरी दुनिया में और कोई भी नहीं है...
क्या कहें....बस इतना ही कि
सफल होने की बजाय श्रेष्ठ होने की कोशिश हो...

*( इतनी उहापोह इसलिए है कि संगीत के एक कार्यक्रम में जजमेंट के लिए जाना है...बड़ी कठिन स्थिति है ...हम जजमेंट करने में हर बार यूँ ही हैरान होते हैं .....)
- आज भी रखे हैं पछतावे की आलमारी में....इक दो वादे जो दोनों से निबाहे न गए.....

- तुझे औरों की भी ज़रुरत है.....मुझे एहसास क्यूँ नहीं होता....

चले आओ कि फिर से अजनबी होकर मिलें ,
तुम मेरा नाम पूछो , मैं तुम्हारा हाल पूछूं !:)


- यूँ तंग ना किया करो
यह सब कहने के लिए है
जानते हो तुम भी
जानती हूँ मैं भी..

भला तुमसे तंग हुई हूँ मैं कभी..?

साँसें बस में नहीं रहीं
तो बस
यूं ही कह दिया..!!



'' नींदों के एहसान उठाए ,
फिर भी तेरे ख़्वाब न आए ''




' दर्द के मुरीद थे हम....मुहब्बत न करते तो क्या करते...'
रखकर मेरी आँखों पे अपने हाथ.....इक ख्वाब का महूरत कर दो ......शब-ब-ख़ैर !:)
कल रात जब सितारे उड़ रहे थे हवा के साथ......हमने भी इक बात कर ली खुदा के साथ !:))
कोई रूठता ही इसलिए है ना कि मना ले कोई ??
लेकिन, कोई इसलिए ही रूठा हो कि मनाता ही नहीं कोई...तो ??

'' सौ बार अगर तुम रूठ गए, हम तुमको मना ही लेते थे ,
इक बार अगर हम रूठ गए,तुम हमको मनाना क्या जानों ''
इस दिल का उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ अब मैं क्या करूँ......??

चेहरे पे जिसके हैं सभी झूठ की तहरीरें.....दिल उसी शक्स के वादों से बहलता क्यूँ है....??

( मेरा दिल कहे कहीं ये न हो....नहीं ये न हो....नहीं ये न हो....)
प्रेम में डूबी लड़कियों के गले पर स्पर्श करोगे, तो पाओगे, अंदर कांटे भरे हैं। गुलाब के डंठल की तरह। ये रुलाहट को रोकने की कोशिश में उगने वाले कांटे होते हैं।

- गीत चतुर्वेदी -


--और प्रेम में डूबी लड़कियों के अनाहत पर स्पर्श करोगे, तो पाओगे की अन्दर पत्थर भरे हैं जो दिल में करवट लेती टीस को भीतर ही दबाने के लिए होते हैं...
उनके तगाफुल पे न कर शिकवा ऐ दिल......दोस्तों को बड़े इख्तियारात होते हैं......
यूँ पलकें मूँद लेने से नींद नहीं आती....सोते वो लोग हैं जिनके लिए कोई जाग रहा हो...शुभ-रात्रि !:)
मुख़्तसर ये के अच्छे लगते हो......वजह ये के वजह मालूम नहीं......
जुगनू जो कहते हैं वृक्षों से लिपट कर ,
गाँव के सुनसान रास्तों को गले लगा जो कहती है चांदनी ,
टिमटिमाते तारों से जो कहता है आकाश...
उसे समझने के लिए लिए किसी भाषा ज्ञान की ज़रुरत कहाँ है भला??

मुझे नही आती आकाश की भाषा ...लेकिन,
दिल महसूस करता है उस अनजानी भाषा में कही हुई हर बात...

(मित्र नित्यानंद जी की कविता पर टिप्पणी )

वो तुम्हारी बात जहाँ दिल में बैठ जाती हैं.....बस वही कोना दिल का हमें भला लगता है.....
- ये काफी नहीं कि हम दुश्मन नहीं.......वफादारी का दावा क्यूँ करें हम........??

- थोड़े तुममे हम रह जाएं....थोड़े हममे तुम रह जाना.....शुभ-रात्रि !:)
उससे कह दे कोई नज़र आकर अज़ीयत मुख़्तसर कर दे....
कितनी दफ़े हुआ ऐसा कि तुम नहीं मिले काफी दिनों तक ....हम यादों को हाथ पकड़ कर बुला लाते पास अपने ...मन पूछा करता मिलोगे तो क्या क्या बताएँगे तुम्हें ...?
याद है हमें ....तुम भीगे मन से किस तरह सुना करते थे बातें मन की ...जो रो रो कर हम सुनाया करते ...
अबकी मिलोगे तो ....तो कोई ऐसी बात सुनाएंगे जिसे सुनकर तुम मुस्कुराओ ....और बस मुस्कुराते जाओ ...और हम यूँ ही निहारते हुए तुम्हें..............................................................हह..


( * लिखी जा रही कहानी का अंश )
'' जाने किस रंग से रूठेगी तबीयत उसकी
जाने अब किस ढंग से उसको मनाना होगा ''

तुमसे ग़र रूठ जाए कोई....तुम भला किस तरह मनाओगे ??
क्यों हर बात इस इंतज़ार में रहती है कि तुम सुन लो जो ज़रूरी नहीं है तुम्हारे लिए ...
तुम वहाँ होते ही नहीं हो जहां दिखते हो...
तुमने क्यूँ खुद को छुपा रक्खा है कि किसी भी तरह तुम तक पहुंचा नहीं जा सकता...
लेकिन, ऐसे में भी तुम दूर नहीं लगते हो...
सफ़र की वीरानगी ओढ़े हुए न जाने क्या तलाश करते क़दम चल रहे थे ...न साथ की चाहत थी न मंज़िल की तिश्नगी ....बात थी इक सांस की जो लिए जा रहे थे....साया सा कोई एहसास जो साथ चल रहा था...आँखें थीं उसकी मुन्तज़िर ....दिल यकीन से भरा हुआ....साथ होने के जज़्बे से क़दम मिल रहे थे ....चेहरे में उसके इक अपनी सी बेगानगी थी ....साथ इक अजनबी के हम अपनी ज़िन्दगी से मिल रहे थे...

दरअसल तस्वीरें सांस लेतीं हैं लम्हे ज़िंदा रखने को...

कुछ चेहरे तस्वीरें बने सामने पड़े थे ... आवाजें सुनने की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.... दिल इस सोच में रहा करता कि कैसे बुलाएं आवाज़ों को.... कभी आवाज़ें होती ...तो चेहरे नहीं होते और चेहरे होते तो आवाज़ें खो जाती....कशमकश में ही थे कि ....तस्वीर ने हमारा नाम लेकर पुकारा.....:)) :))

''मन हर वक़्त किसी न किसी खुशबू के साथ रहा करता है...''



मैसूर संदल सोप...इस साबुन की खुशबू के साथ स्कूल की रोड पर लैंटाना घास की खुशबू का मिश्रण याद है, जो गीदम ( बस्तर का एक गाँव ) की याद दिलाता है ....जब -सुबह सवेरे नहा धोकर पापाजी की मोटरसायकल में बैठ कर स्कूल जाया करते थे...आज भी कभी-कभी सुबह सात बजे के आस-पास बरबस ही वो खुशबू याद आ जाया करती है...

फरसगांव में घर से लगा हुआ घना जंगल था ....उस जंगल की अजब सी खुशबू ...और ख़ास ये कि दिन के वक़्त वो जंगल जितना खूबसूरत लगा करता ....रात होते होते उतना ज्यादा डरावना हो जाया करता ...और रात को वो खुशबू भी कुछ गुनगुनी सी हो जाया करती ....याद करके अब भी दिल धड़क जाता है....

पहली बार किसी विदेशी महिला को देखा था ...उसके परफ्यूम की खुशबू भी अब तक है ज़ेहन में ....

पापाजी की म्यूज़िक लाइब्रेरी की खुशबू तो अद्भुत है....बहुत गहरी खुशबू है...

सारे एल पी / ई पी की तस्वीरें तक याद हैं ....याद है किस रिकॉर्ड के बीच में ...किसी में लाल रंग था ...किसी में बैगनी ...किसी में काला...

और किताबों की खुशबू ....आह!

हर किताब की अलहदा खुशबू ....स्कूल बुक्स की अलग ...कॉमिक्स की अलग ...हर किताब को छूने का एहसास अलग ....मन डूब-डूब जाता है इन खुशबुओं में...

कुछ आवाज़ों की खुशबुएँ क़ैद हैं ज़ेहन में....और कुछ रंगों की भी....हर आवाज़ की अलग ...हर रंग की अलग खुशबू ....

ऐसी ही जाने कितनी खुशबुओं से घिरा रहता है मन....इन खुशबुओं से बड़ा प्यार है हमें ....बहुत प्यार....इन ख़ुशबुओं का हमारे बचपन की यादों से बड़ा गहरा सम्बन्ध है...

ख्यालों की दुनिया

ख्यालों की दुनिया
नज़र नवाज़ नज़ारों की दुनिया
हक़ीक़त के कितने क़रीब...लेकिन कितनी दूर
इक ज़रा हाथ बढ़ाया और चाँद बांहों में
और कहीं ख्यालों में ही बिछड़ जाए कोई
तो जैसे जान ही लेकर जाए

Sunday, March 24, 2013

चलो मान जाओ ना...

तुम्हें हक़ है
कि तुम दिल दुखाओ
और दुखाओ
आज तुम न मानना
तब तक
जब तक तुम्हें मनाते-मनाते
मैं न उदास हो जाऊं
रुलाई न फूट पड़े मेरी

उफ्फ् ये नाउम्मीदी
खुद पे इतना भी ऐतबार नहीं
कि कह सकूं कि
अब गलती नहीं होगी
चलो यूँ मान लो
कि अब बहुत दिनों बाद होगी
जैसे आश्विन के बाद आता है सावन

Friday, March 15, 2013

काश मैं तुम्हारी बेटी होती...

काश मैं तुम्हारी बेटी होती
तो तुम
मुझे भी फ्रॉक पहनाते
चोटी बनाते
गोद में उठाते
मेरी अठखेलियों में खो जाते
मेरी नाराज़गियों पर
मुझे फुसलाते...बहलाते

अभी-अभी
मेरी आवाज सुनकर
माथे पे बिखरे बालों को
जिस तरह कानों के पीछे संवारा तुमने
और फिर अपने ही हाथों को चूम लिया
यकीन मानों इस इक पल में
ये ख्वाब बिल्कुल ही सच सा लगा

Tuesday, February 26, 2013

दुआएं...

टूटी हुई पलक में
लपेट कर दुआएं
उड़ा दीं
टकराके अर्श से
कहीं लौट न आएं
भेजी हुई दुआएं
तुम जो कह दो तो
कुबूल हो जाएँ
मुसलसल गुज़रती ज़िन्दगी
और रफ़्तार उसकी
यादों में उभरते हैं कभी-कभी
अतीत के कुछ मिटे मिटे से चित्र
एक काफिला सा रुकता है आके
आरज़ूओं के मरुस्थल में
शायद अनजाने ही
इन धुंधली मिटती यादों के बीच
कोई ख्‍वाहिश हमेशा
अपनी जगह कायम रहती है ताउम्र...
कुदरत की प्यार भरी नज़र ने
धरती के गालों पे सुर्खियां सजाई
सूरज ने झाँक कर देखना चाहा
समंदर शरमाया
यूँ पलकें न झुकाओ
कि भोर होने के ठीक पहले
सांझ ढलती सी लगे
पलकें उठाओ
सूरज माथे पे सजाओ
कि दिन निकल आया है

......सु-प्रभात!:)

झूठ...

काश!
कभी झूठमूठ ही
कह दो

यकीन मानो
उम्र भर को काफी होगा
आखिर ध्वनि का भी
अपना विज्ञान है
और यकीन का भी

वो झूठ
तुम्हारी आवाज़ में सच ही लगेगा
जब गूंजा करेगा कानों में...
इतनी शिद्दत की बग़ावत है मेरे जज़्बों में ,
हम किसी रोज़ मुहब्बत से न मुकर जाएं !:)
होता है कभी यूँ भी कि
हर अच्छी बात
अच्छी नहीं लगती

कोई समझाइश,
कोई मशविरा
काम नहीं आता
बदमाश दिल बगावत पे उतारू है

लेकिन क्यूँ बग़ावत ...
किससे बग़ावत...
कब तक बगावत ?
ये ही तो नहीं पता...

कंबख्त तुम्हें तो पता होगा
बता दो कि क्यूं है
ये आलम चार-सूं...

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम....



वक़्त था कि
बिछुड़ते दिल दुखता था
उससे भी
जो बहुत अपना न था
आज तुमसे बिछड़ कर
उदास नहीं दिल

यूँ तो मिलने की कोई चाह नहीं
अगरचे फिर मिलो कभी
तो मिलेंगे उसी अपनापे से
हाँ! बेशक
धडकनें तब
बेतरतीब न होंगी दिल की...

(जैसे के निदा फाज़ली कहते भी हैं -
''अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला'' )

Wednesday, February 13, 2013

एक कहानी नानी की

बारहा सुनकर भी थकती नहीं मैं
कहानी अपने बचपन की
ढूंढती हूँ पर मिलता ही नहीं
वो चांदी का झुनझुना...
जाने कौन चुरा ले गया
वही बला ले गई हो शायद
जिससे बचाने की ख़ातिर
सिरहाने रख दिया गया था एक हथियार...


( नींद की आगोश में जाने से ठीक पहले... )
वो शख्स नज़र आए कभी तो उससे फ़क़त इतना कहना....,
जिनको आदी कर दिया है अपना वो लोग बहुत याद करते हैं...♥
तसव्वुर में लिपटी
आँखों का ख्वाब था
या कहीं फिर से उठा
जज़्बात का सैलाब था
देखा था अभी-अभी
वक़्त के दामन से फिसलते
पिछले ही लम्हें में
अभी तक तेरी
आमद की आहट से
बेचैन है धड़कनें दिल की
फिर....न जाने क्यूँ ख़ाली है
कोरा है...ज़िन्दगी का ये मंज़र...तुझ बिन...
कितना थोड़ा तो है जीवन
कितनी थोड़ी सी हैं साँसें
कितना थोड़ा हमारा साथ
कितने थोड़े साथ के एहसासात
कितनी थोड़े हो तुम मेरे
कितनी थोड़ी मैं तुम्हारी
इस थोड़े से जीवन में
कितना थोड़ा समय तुम्हारे पास..कि
कभी थोड़ी सी और बात करने की
थोड़ी देर और ठहर जाने की
थोड़ा और नज़दीक आने की
जाते हुए पलट कर थोड़ा और देख लेने की
थोड़ी सी और चाहत नहीं करते तुम
इतने थोड़े जीवन में
इतनी थोड़ी सी चीज़ें
जैसे तुम्हारा बड़ा सा वजूद
तुम्हारा थोड़ा सा होना
यूँ लगता है
थोड़ा है...थोड़े की ज़रुरत है...
चाँद रात थी
हर चीज़ जैसे दूध में नहाई हुई
गहराती रात में धड़कते दिलों के साथ
हाथ थे कुछ बंधे कुछ छूटे से
नर्मियां हवा में ही नहीं
कानों में भी बजतीं हैं छन..छन..
चाँदनी से ही क्या तुम्हारी नज़रें हैं शफ़ाक
या मेरी नज़रों की चमक अपनी पलकों पे छुपाए हो ??
तुम्हें पता है...
जब..न,तुम मुस्कुराते हो
न कोई भाव चेहरे पर दिखाते हो
बस इक उड़ती सी निगाह डालते हो मुझ पर
यूँ लगता है
कोई चुपचाप रख आया है अपना दुशाला
सोते कांपते बच्चे के पास
अरे ! ये मौसम में नमी कैसी ??
याद करके दिल बरसने लगा है शायद...
मुझे पता है
मेरे रास्ते बदल लेने का खौफ़
तुम्हें पलटने पर मजबूर कर देगा
वो बेचैनी...वो जलन...वो कशमकश
तुम्हारे इस बर्फ़ से दिल को पिघला देगी
लेकिन...
तुम पलटोगे
ज़रूर पलटोगे...


 ****************************

 
मुझे पता है
मेरे रास्ते बदल लेने का खौफ़
तुम्हें पलटने पर मज़बूर कर देगा
मैं जानती हूँ
वो बेचैनी...वो जलन...वो कशमकश
तुम्हारे इस बर्फ़ से दिल को पिघला देगी
इसलिए यकीं है
तुम पलटोगे ज़रूर 'मेरी ख़ातिर'
और अपनी जिदें छोड़,
तुम्हें खो देने की भूल करने से मुझे बचा लोगे.
:))
खुद को अपनी नज़रों में
इतनी ऊंची मीनार पर रखते हैं हम
कि कभी जो मुंह के बल गिरे वहां से तो
इतनी दूर तक फैलती हैं उसकी किरचें कि
समेटना नामुमकिन

किन्हीं कमज़ोर पलों मे हुई नादानियां
हर वक़्त बेचैन रखतीं हैं दिल
और जीने नहीं देतीं
कोई आपको बुरा समझे
बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता
जितना खुद को समझने से पड़ता है
बचपन में सिखाई गई बातें
बिना समझे ही मानते रहना
कई बार बेहतर होता है
नादानियों के लिहाज से...

हम चैन से जी रहे होते हैं
खुद को अच्छा...
बहुत अच्छा समझते हुए

Rose Day ...

अभी-अभी देखा कि आज Rose Day है -

आँगन में खिले गुलाब से लिपटकर आती हवा गुलाबी
मन में खिल गए हैं अब इतने गुलाब कि
तुम्हारी याद से हो गई हैं आँखें पुर'आब
गुलाबी मौसम की....गुलाबी शाम में
कितनी तरह से खिलते हैं तेरी
यादों के गुलाब...

( आख़िर प्रिय फूल भी तो है )
यादों के झरोखे से
जो निकल के आतीं हैं तस्वीरें
उनमें कहीं तुम हो
लगता तो है कि तुम हो
क्या सचमुच हो ??

( नींद की आगोश में जाने से ठीक पहले...)

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं .....

नाम है, ख़याल है कि ये याद है तुम्‍हारी....

मन क्‍यों भीग-भीग जाता है तुम्‍हें सोचते ही...

पिछली बार क्‍या हुआ था...

किसी बात पर हमने

एक दूसरे का कहीं दिल तो नहीं दुखाया था...

( आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं ......)
रात भर तो तुमसे नाराज़ रहा
सुबह होते ही सुलह पे आमादा है

नाफ़रमान...बे-ग़ैरत दिल...हुंह...♥

Friday, January 11, 2013

इक ख़ामोश चीख...

लगभग चीखती-सी
दिल को चीरती हुई
तुम्हारी वो अनकही
सुनी मैंने अभी-अभी
लेकिन जाने कैसा शोर बरपा है
इन दिनों हर तरफ ?
भीतर-बाहर का मौसम बड़ा सर्द है
कि तुम्हारी अबोली बातें
न सुन सका दिल
उफ्फ्फ़...कितने उदास
कितने हताश हुए होगे तुम
चीखने से ठीक पहले
कितना तड़पे होगे
जानते हो
अनजाने ही हुआ सब
कभी होता भी तो है कि
हम सुनने की हालत में
लिसनिंग मोड में नहीं होते
अब सुन ली है दिल ने
वो अनकही सदा तुम्हारी
अबोले की गलतफहमियां नहीं होंगी
इतना तो यकीन है ही
और यूँ भी अस्फुट स्वरों में
बिना कुछ कहे
जैसे दूर बैठे बतियाते हैं
हमेशा बतियाते रहेंगे हम !