चाँद रात थी
हर चीज़ जैसे दूध में नहाई हुई
गहराती रात में धड़कते दिलों के साथ
हाथ थे कुछ बंधे कुछ छूटे से
नर्मियां हवा में ही नहीं
कानों में भी बजतीं हैं छन..छन..
चाँदनी से ही क्या तुम्हारी नज़रें हैं शफ़ाक
या मेरी नज़रों की चमक अपनी पलकों पे छुपाए हो ??
तुम्हें पता है...
जब..न,तुम मुस्कुराते हो
न कोई भाव चेहरे पर दिखाते हो
बस इक उड़ती सी निगाह डालते हो मुझ पर
यूँ लगता है
कोई चुपचाप रख आया है अपना दुशाला
सोते कांपते बच्चे के पास
अरे ! ये मौसम में नमी कैसी ??
याद करके दिल बरसने लगा है शायद...