Tuesday, February 26, 2013

दुआएं...

टूटी हुई पलक में
लपेट कर दुआएं
उड़ा दीं
टकराके अर्श से
कहीं लौट न आएं
भेजी हुई दुआएं
तुम जो कह दो तो
कुबूल हो जाएँ
मुसलसल गुज़रती ज़िन्दगी
और रफ़्तार उसकी
यादों में उभरते हैं कभी-कभी
अतीत के कुछ मिटे मिटे से चित्र
एक काफिला सा रुकता है आके
आरज़ूओं के मरुस्थल में
शायद अनजाने ही
इन धुंधली मिटती यादों के बीच
कोई ख्‍वाहिश हमेशा
अपनी जगह कायम रहती है ताउम्र...
कुदरत की प्यार भरी नज़र ने
धरती के गालों पे सुर्खियां सजाई
सूरज ने झाँक कर देखना चाहा
समंदर शरमाया
यूँ पलकें न झुकाओ
कि भोर होने के ठीक पहले
सांझ ढलती सी लगे
पलकें उठाओ
सूरज माथे पे सजाओ
कि दिन निकल आया है

......सु-प्रभात!:)

झूठ...

काश!
कभी झूठमूठ ही
कह दो

यकीन मानो
उम्र भर को काफी होगा
आखिर ध्वनि का भी
अपना विज्ञान है
और यकीन का भी

वो झूठ
तुम्हारी आवाज़ में सच ही लगेगा
जब गूंजा करेगा कानों में...
इतनी शिद्दत की बग़ावत है मेरे जज़्बों में ,
हम किसी रोज़ मुहब्बत से न मुकर जाएं !:)
होता है कभी यूँ भी कि
हर अच्छी बात
अच्छी नहीं लगती

कोई समझाइश,
कोई मशविरा
काम नहीं आता
बदमाश दिल बगावत पे उतारू है

लेकिन क्यूँ बग़ावत ...
किससे बग़ावत...
कब तक बगावत ?
ये ही तो नहीं पता...

कंबख्त तुम्हें तो पता होगा
बता दो कि क्यूं है
ये आलम चार-सूं...

वक़्त ने किया क्या हसीं सितम....



वक़्त था कि
बिछुड़ते दिल दुखता था
उससे भी
जो बहुत अपना न था
आज तुमसे बिछड़ कर
उदास नहीं दिल

यूँ तो मिलने की कोई चाह नहीं
अगरचे फिर मिलो कभी
तो मिलेंगे उसी अपनापे से
हाँ! बेशक
धडकनें तब
बेतरतीब न होंगी दिल की...

(जैसे के निदा फाज़ली कहते भी हैं -
''अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला'' )

Wednesday, February 13, 2013

एक कहानी नानी की

बारहा सुनकर भी थकती नहीं मैं
कहानी अपने बचपन की
ढूंढती हूँ पर मिलता ही नहीं
वो चांदी का झुनझुना...
जाने कौन चुरा ले गया
वही बला ले गई हो शायद
जिससे बचाने की ख़ातिर
सिरहाने रख दिया गया था एक हथियार...


( नींद की आगोश में जाने से ठीक पहले... )
वो शख्स नज़र आए कभी तो उससे फ़क़त इतना कहना....,
जिनको आदी कर दिया है अपना वो लोग बहुत याद करते हैं...♥
तसव्वुर में लिपटी
आँखों का ख्वाब था
या कहीं फिर से उठा
जज़्बात का सैलाब था
देखा था अभी-अभी
वक़्त के दामन से फिसलते
पिछले ही लम्हें में
अभी तक तेरी
आमद की आहट से
बेचैन है धड़कनें दिल की
फिर....न जाने क्यूँ ख़ाली है
कोरा है...ज़िन्दगी का ये मंज़र...तुझ बिन...
कितना थोड़ा तो है जीवन
कितनी थोड़ी सी हैं साँसें
कितना थोड़ा हमारा साथ
कितने थोड़े साथ के एहसासात
कितनी थोड़े हो तुम मेरे
कितनी थोड़ी मैं तुम्हारी
इस थोड़े से जीवन में
कितना थोड़ा समय तुम्हारे पास..कि
कभी थोड़ी सी और बात करने की
थोड़ी देर और ठहर जाने की
थोड़ा और नज़दीक आने की
जाते हुए पलट कर थोड़ा और देख लेने की
थोड़ी सी और चाहत नहीं करते तुम
इतने थोड़े जीवन में
इतनी थोड़ी सी चीज़ें
जैसे तुम्हारा बड़ा सा वजूद
तुम्हारा थोड़ा सा होना
यूँ लगता है
थोड़ा है...थोड़े की ज़रुरत है...
चाँद रात थी
हर चीज़ जैसे दूध में नहाई हुई
गहराती रात में धड़कते दिलों के साथ
हाथ थे कुछ बंधे कुछ छूटे से
नर्मियां हवा में ही नहीं
कानों में भी बजतीं हैं छन..छन..
चाँदनी से ही क्या तुम्हारी नज़रें हैं शफ़ाक
या मेरी नज़रों की चमक अपनी पलकों पे छुपाए हो ??
तुम्हें पता है...
जब..न,तुम मुस्कुराते हो
न कोई भाव चेहरे पर दिखाते हो
बस इक उड़ती सी निगाह डालते हो मुझ पर
यूँ लगता है
कोई चुपचाप रख आया है अपना दुशाला
सोते कांपते बच्चे के पास
अरे ! ये मौसम में नमी कैसी ??
याद करके दिल बरसने लगा है शायद...
मुझे पता है
मेरे रास्ते बदल लेने का खौफ़
तुम्हें पलटने पर मजबूर कर देगा
वो बेचैनी...वो जलन...वो कशमकश
तुम्हारे इस बर्फ़ से दिल को पिघला देगी
लेकिन...
तुम पलटोगे
ज़रूर पलटोगे...


 ****************************

 
मुझे पता है
मेरे रास्ते बदल लेने का खौफ़
तुम्हें पलटने पर मज़बूर कर देगा
मैं जानती हूँ
वो बेचैनी...वो जलन...वो कशमकश
तुम्हारे इस बर्फ़ से दिल को पिघला देगी
इसलिए यकीं है
तुम पलटोगे ज़रूर 'मेरी ख़ातिर'
और अपनी जिदें छोड़,
तुम्हें खो देने की भूल करने से मुझे बचा लोगे.
:))
खुद को अपनी नज़रों में
इतनी ऊंची मीनार पर रखते हैं हम
कि कभी जो मुंह के बल गिरे वहां से तो
इतनी दूर तक फैलती हैं उसकी किरचें कि
समेटना नामुमकिन

किन्हीं कमज़ोर पलों मे हुई नादानियां
हर वक़्त बेचैन रखतीं हैं दिल
और जीने नहीं देतीं
कोई आपको बुरा समझे
बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता
जितना खुद को समझने से पड़ता है
बचपन में सिखाई गई बातें
बिना समझे ही मानते रहना
कई बार बेहतर होता है
नादानियों के लिहाज से...

हम चैन से जी रहे होते हैं
खुद को अच्छा...
बहुत अच्छा समझते हुए

Rose Day ...

अभी-अभी देखा कि आज Rose Day है -

आँगन में खिले गुलाब से लिपटकर आती हवा गुलाबी
मन में खिल गए हैं अब इतने गुलाब कि
तुम्हारी याद से हो गई हैं आँखें पुर'आब
गुलाबी मौसम की....गुलाबी शाम में
कितनी तरह से खिलते हैं तेरी
यादों के गुलाब...

( आख़िर प्रिय फूल भी तो है )
यादों के झरोखे से
जो निकल के आतीं हैं तस्वीरें
उनमें कहीं तुम हो
लगता तो है कि तुम हो
क्या सचमुच हो ??

( नींद की आगोश में जाने से ठीक पहले...)

आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं .....

नाम है, ख़याल है कि ये याद है तुम्‍हारी....

मन क्‍यों भीग-भीग जाता है तुम्‍हें सोचते ही...

पिछली बार क्‍या हुआ था...

किसी बात पर हमने

एक दूसरे का कहीं दिल तो नहीं दुखाया था...

( आज दिल पे कोई ज़ोर चलता नहीं ......)
रात भर तो तुमसे नाराज़ रहा
सुबह होते ही सुलह पे आमादा है

नाफ़रमान...बे-ग़ैरत दिल...हुंह...♥