होता है कभी यूँ भी कि
हर अच्छी बात
अच्छी नहीं लगती
कोई समझाइश,
कोई मशविरा
काम नहीं आता
बदमाश दिल बगावत पे उतारू है
लेकिन क्यूँ बग़ावत ...
किससे बग़ावत...
कब तक बगावत ?
ये ही तो नहीं पता...
कंबख्त तुम्हें तो पता होगा
बता दो कि क्यूं है
ये आलम चार-सूं...
हर अच्छी बात
अच्छी नहीं लगती
कोई समझाइश,
कोई मशविरा
काम नहीं आता
बदमाश दिल बगावत पे उतारू है
लेकिन क्यूँ बग़ावत ...
किससे बग़ावत...
कब तक बगावत ?
ये ही तो नहीं पता...
कंबख्त तुम्हें तो पता होगा
बता दो कि क्यूं है
ये आलम चार-सूं...
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