खुद को अपनी नज़रों में
इतनी ऊंची मीनार पर रखते हैं हम
कि कभी जो मुंह के बल गिरे वहां से तो
इतनी दूर तक फैलती हैं उसकी किरचें कि
समेटना नामुमकिन
किन्हीं कमज़ोर पलों मे हुई नादानियां
हर वक़्त बेचैन रखतीं हैं दिल
और जीने नहीं देतीं
कोई आपको बुरा समझे
बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता
जितना खुद को समझने से पड़ता है
बचपन में सिखाई गई बातें
बिना समझे ही मानते रहना
कई बार बेहतर होता है
नादानियों के लिहाज से...
हम चैन से जी रहे होते हैं
खुद को अच्छा...
बहुत अच्छा समझते हुए
इतनी ऊंची मीनार पर रखते हैं हम
कि कभी जो मुंह के बल गिरे वहां से तो
इतनी दूर तक फैलती हैं उसकी किरचें कि
समेटना नामुमकिन
किन्हीं कमज़ोर पलों मे हुई नादानियां
हर वक़्त बेचैन रखतीं हैं दिल
और जीने नहीं देतीं
कोई आपको बुरा समझे
बिल्कुल फर्क नहीं पड़ता
जितना खुद को समझने से पड़ता है
बचपन में सिखाई गई बातें
बिना समझे ही मानते रहना
कई बार बेहतर होता है
नादानियों के लिहाज से...
हम चैन से जी रहे होते हैं
खुद को अच्छा...
बहुत अच्छा समझते हुए
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