Wednesday, February 13, 2013

तसव्वुर में लिपटी
आँखों का ख्वाब था
या कहीं फिर से उठा
जज़्बात का सैलाब था
देखा था अभी-अभी
वक़्त के दामन से फिसलते
पिछले ही लम्हें में
अभी तक तेरी
आमद की आहट से
बेचैन है धड़कनें दिल की
फिर....न जाने क्यूँ ख़ाली है
कोरा है...ज़िन्दगी का ये मंज़र...तुझ बिन...

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