Tuesday, February 26, 2013

कुदरत की प्यार भरी नज़र ने
धरती के गालों पे सुर्खियां सजाई
सूरज ने झाँक कर देखना चाहा
समंदर शरमाया
यूँ पलकें न झुकाओ
कि भोर होने के ठीक पहले
सांझ ढलती सी लगे
पलकें उठाओ
सूरज माथे पे सजाओ
कि दिन निकल आया है

......सु-प्रभात!:)

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