वक़्त था कि
बिछुड़ते दिल दुखता था
उससे भी
जो बहुत अपना न था
आज तुमसे बिछड़ कर
उदास नहीं दिल
यूँ तो मिलने की कोई चाह नहीं
अगरचे फिर मिलो कभी
तो मिलेंगे उसी अपनापे से
हाँ! बेशक
धडकनें तब
बेतरतीब न होंगी दिल की...
(जैसे के निदा फाज़ली कहते भी हैं -
''अब ख़ुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला'' )
No comments:
Post a Comment