पहली कविता...
कल रात
जो कुछ कहा तुमने
क्यूँ कहने को मुझे चुना तुमने
वही कह रहे थे तुम
जो मरकर भी सुनना चाहेगा कोई
लेकिन
इस तरह कहा तुमने
कि सुना ही न गया
अपना तो कहा लेकिन
माना कहाँ अपना
जो माना होता
तो कहो तो भला
क्यूँकर कहते
जो कहा तुमने ?
अपना मानते तो भी
कहते वही
जो कहकर एक ही पल में
कर दिया पराया तुमने
****************
ये दूसरी कविता.....
कभी होता है यूँ भी
कि अपने ही दिल का
क्यूँ कहने को मुझे चुना तुमने
वही कह रहे थे तुम
जो मरकर भी सुनना चाहेगा कोई
लेकिन
इस तरह कहा तुमने
कि सुना ही न गया
अपना तो कहा लेकिन
माना कहाँ अपना
जो माना होता
तो कहो तो भला
क्यूँकर कहते
जो कहा तुमने ?
अपना मानते तो भी
कहते वही
जो कहकर एक ही पल में
कर दिया पराया तुमने
****************
ये दूसरी कविता.....
कभी होता है यूँ भी
कि अपने ही दिल का
पता नहीं होता ख़ुद को
ये जानकर भी कि
तुमने दुखाया है दिल
तुमसे नाराज़ नहीं मैं
चोट खाकर, सबकुछ सह कर भी
तुमपे गुस्सा नहीं आया
क्यूँ आख़िर ?
तुम तो कोई नही हो न मेरे
सिर्फ एक दोस्त...जस्ट ए फ्रेंड
तो क्यूँ ये सोचकर
हैरान है दिल कि
तुम उदास होगे
परेशान होगे
ख़ुद से नाराज़ होगे
ये दिल भी ना ,अजीब शै है
धड़कने से इसके ज़िंदा हैं हम
धड़कनों से इसकी जीना मुहाल है
ये जानकर भी कि
तुमने दुखाया है दिल
तुमसे नाराज़ नहीं मैं
चोट खाकर, सबकुछ सह कर भी
तुमपे गुस्सा नहीं आया
क्यूँ आख़िर ?
तुम तो कोई नही हो न मेरे
सिर्फ एक दोस्त...जस्ट ए फ्रेंड
तो क्यूँ ये सोचकर
हैरान है दिल कि
तुम उदास होगे
परेशान होगे
ख़ुद से नाराज़ होगे
ये दिल भी ना ,अजीब शै है
धड़कने से इसके ज़िंदा हैं हम
धड़कनों से इसकी जीना मुहाल है