Tuesday, August 14, 2012

मासूम ख़यालों ने अपनी आगोश में ,जब कुछ ख़्वाब समेटे ,
कुछ यूँ ही बेइरादा ख़्वाहिशें , आँखों में मुस्कान संजो गईं ,
चहरे की नरमी सुर्ख होकर, नई साँसों की खुशबू में खो गई ,
कुछ नए रंग बिखरे , कुछ नए सुर सजे ,
ज़िन्दगी की नई तस्वीर जैसे ख़्वाबों के रंग से सजी ,
ख़्वाहिशें तरन्नुम में नई ग़ज़ल गुनगुनाने लगीं ,
लेकिन इस बेख़ुदी के न तो ख़्वाब पहचाने से थे ,न ही ख़्वाहिशें ,
चेहरे का नूर , आँखों की मुस्कान , नया रंग और तरन्नुम भी, दुनियाँ से जुदा थे ,
वो क्या था जो बिखर गया....
किसी फ़रिश्ते की दुआओं का शाहकार था शायद...
या थी वो किसी मासूम दिल की, मासूम फ़रियाद...

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