Monday, June 2, 2014



एक लड़की थी   
खवाब में डूबी
एक ही ख्वाब
कई बार
बार बार देखती  
ख्वाब देखती हुई उसकी आँखें
जैसे आकंठ प्रेम में डूबी छलछलाती
दुनिया की सबसे संतृप्त  आँखे   
और एक दिन  यूँ हुआ
कि उसने जाकर उन ख़्वाबों को छू लिया ...


( ख्वाब देखने और खवाब को हाथ लगा आने में कितना फ़र्क है .... मन की छोटी छोटी जाने कितनी अक्षुण्ण चाहतों का इंसान को ख़ुद ही पता नहीं होता  ....
यूँ तो चाहतें पूरी हो तो सुकून मिलना चाहिए  ना ?  ....   लेकिन  ...  

Thursday, June 27, 2013

कोई आहट, कोई जुम्बिश, कोई दस्तक नहीं मिलती,
हमारे शहर-ए-वीरान में, बहोत फ़ुरसत का मौसम है
दिल पे जो गुज़रती है.........दिया करते हैं
तार अश्कों के उसकी ख़बर लगातार मुझे

Monday, June 10, 2013

इक अजीब सी धुन है....गुनगुनाते हुए बहुत पहचानी सी लगती है ....यूँ याद नहीं रहती .....अनायास ही मन गुनगुनाता है ...और फिर उदास हो जाता है ....
अश'आर के परदे में हैं किससे मुख़ातिब...वो समझ तो गए होंगे...क्यूँ नाम लिया जाए...
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी सीने पे झूलता लॉकेट
उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से
सीधा करता रहूँ उसको

मुझको इतने से काम पे रख लो...

जब भी आवेज़ा उलझे बालों में
मुस्कुराके बस इतना सा कह दो
आह चुभता है ये अलग कर दो

मुझको इतने से काम पे रख लो....

जब ग़रारे में पाँव फँस जाए
या दुपट्टा किवाड़ में अटके
एक नज़र देख लो तो काफ़ी है

मुझको इतने से काम पे रख लो...

'प्लीज़' कह दो तो अच्छा है
लेकिन मुस्कुराने की शर्त पक्की है
मुस्कुराहट मुआवज़ा है मेरा

मुझको इतने से काम पे रख लो

- गुलज़ार -
तुम्हारी बात कोई
जी को इस क़दर बुरी लगी
इस बार जाने क्या हुआ
बताने को जी नहीं किया
बेईमान कह लो...