कोई आहट, कोई जुम्बिश, कोई दस्तक नहीं मिलती, हमारे शहर-ए-वीरान में, बहोत फ़ुरसत का मौसम है
दिल पे जो गुज़रती है.........दिया करते हैं तार अश्कों के उसकी ख़बर लगातार मुझे
Monday, June 10, 2013
इक
अजीब सी धुन है....गुनगुनाते हुए बहुत पहचानी सी लगती है ....यूँ याद नहीं
रहती .....अनायास ही मन गुनगुनाता है ...और फिर उदास हो जाता है ....
अश'आर के परदे में हैं किससे मुख़ातिब...वो समझ तो गए होंगे...क्यूँ नाम लिया जाए...
मुझको इतने से काम पे रख लो... जब भी सीने पे झूलता लॉकेट उल्टा हो जाए तो मैं हाथों से सीधा करता रहूँ उसको
मुझको इतने से काम पे रख लो...
जब भी आवेज़ा उलझे बालों में मुस्कुराके बस इतना सा कह दो आह चुभता है ये अलग कर दो मुझको इतने से काम पे रख लो....
जब ग़रारे में पाँव फँस जाए या दुपट्टा किवाड़ में अटके एक नज़र देख लो तो काफ़ी है
मुझको इतने से काम पे रख लो...
'प्लीज़' कह दो तो अच्छा है लेकिन मुस्कुराने की शर्त पक्की है मुस्कुराहट मुआवज़ा है मेरा
मुझको इतने से काम पे रख लो
- गुलज़ार -
तुम्हारी बात कोई जी को इस क़दर बुरी लगी इस बार जाने क्या हुआ बताने को जी नहीं किया बेईमान कह लो...
इत्ते दिनों इत्ता तरसाया मेहरबाँ हुए भी तो आधी रात को आए..बरसे और चले भी गए हम नींद की आगोश में रहे अब..जब आँख खुली है तो बालों को प्यार से सहलाती मुलायम हवा है और चेहरे को चूमती नन्हीं बूँदें भीगी सुन्दर शुभ सुबह मुबारक...
(* हमारी तरफ रात में बरसे हैं बादल )
कोई ये कैसे समझाए कि कितना ज़रूरी होता है बातों का ठीक से ख़त्म होना कुछ इस तरह से अंत हुआ बातों का कि उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ... ख़ैर ...................शुभ- रात्रि!:)
अब प्यार बारिश को बूंदों से किया.......मिलेगा तो ख़ाक ही में ना......?