कुछ
चेहरे तस्वीरें बने सामने पड़े थे ... आवाजें सुनने की बेचैनी बढ़ती जा रही
थी.... दिल इस सोच में रहा करता कि कैसे बुलाएं आवाज़ों को.... कभी आवाज़ें
होती ...तो चेहरे नहीं होते और चेहरे होते तो आवाज़ें खो जाती....कशमकश
में ही थे कि ....तस्वीर ने हमारा नाम लेकर पुकारा.....:)) :))
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