Tuesday, May 21, 2013

''मन हर वक़्त किसी न किसी खुशबू के साथ रहा करता है...''



मैसूर संदल सोप...इस साबुन की खुशबू के साथ स्कूल की रोड पर लैंटाना घास की खुशबू का मिश्रण याद है, जो गीदम ( बस्तर का एक गाँव ) की याद दिलाता है ....जब -सुबह सवेरे नहा धोकर पापाजी की मोटरसायकल में बैठ कर स्कूल जाया करते थे...आज भी कभी-कभी सुबह सात बजे के आस-पास बरबस ही वो खुशबू याद आ जाया करती है...

फरसगांव में घर से लगा हुआ घना जंगल था ....उस जंगल की अजब सी खुशबू ...और ख़ास ये कि दिन के वक़्त वो जंगल जितना खूबसूरत लगा करता ....रात होते होते उतना ज्यादा डरावना हो जाया करता ...और रात को वो खुशबू भी कुछ गुनगुनी सी हो जाया करती ....याद करके अब भी दिल धड़क जाता है....

पहली बार किसी विदेशी महिला को देखा था ...उसके परफ्यूम की खुशबू भी अब तक है ज़ेहन में ....

पापाजी की म्यूज़िक लाइब्रेरी की खुशबू तो अद्भुत है....बहुत गहरी खुशबू है...

सारे एल पी / ई पी की तस्वीरें तक याद हैं ....याद है किस रिकॉर्ड के बीच में ...किसी में लाल रंग था ...किसी में बैगनी ...किसी में काला...

और किताबों की खुशबू ....आह!

हर किताब की अलहदा खुशबू ....स्कूल बुक्स की अलग ...कॉमिक्स की अलग ...हर किताब को छूने का एहसास अलग ....मन डूब-डूब जाता है इन खुशबुओं में...

कुछ आवाज़ों की खुशबुएँ क़ैद हैं ज़ेहन में....और कुछ रंगों की भी....हर आवाज़ की अलग ...हर रंग की अलग खुशबू ....

ऐसी ही जाने कितनी खुशबुओं से घिरा रहता है मन....इन खुशबुओं से बड़ा प्यार है हमें ....बहुत प्यार....इन ख़ुशबुओं का हमारे बचपन की यादों से बड़ा गहरा सम्बन्ध है...

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