Tuesday, May 21, 2013

बे-क़रार बातें...


ख़लाओं में भटकती सी
बातें बे-क़रार हैं
सुने जाने के इंतज़ार में
यूँ नहीं है कि सुनते नहीं हो तुम
बेशक़ सुनते हो लेकिन आँखों से नहीं सुनते
किसी और दुनिया में हो तुम जैसे
और सब कुछ कहकर भी
बाक़ी रह जाता है हलक में बहुत कुछ
सुन लो ना वो सारी अनर्गल बातें
और यूँ सुनो कि क़रार पा जाएं
बे-क़रार बातें
जैसे समंदर सुनता है
चांद की सदाएं
और चांद रात को आता है
दोनों को क़रार

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