ख्यालों की दुनिया
नज़र नवाज़ नज़ारों की दुनिया
हक़ीक़त के कितने क़रीब...लेकिन कितनी दूर
इक ज़रा हाथ बढ़ाया और चाँद बांहों में
और कहीं ख्यालों में ही बिछड़ जाए कोई
तो जैसे जान ही लेकर जाए
नज़र नवाज़ नज़ारों की दुनिया
हक़ीक़त के कितने क़रीब...लेकिन कितनी दूर
इक ज़रा हाथ बढ़ाया और चाँद बांहों में
और कहीं ख्यालों में ही बिछड़ जाए कोई
तो जैसे जान ही लेकर जाए
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