साझा सन्देश...
ये कविता बे-रंग ही होती
जो यूँ न रूठते तुम
और दिल महसूस न करता कि
तुम क्या हो मेरे लिए
क्या ये संभव है कि
लिखा जाए इक साझा सन्देश
इक पाती, इस रिश्ते के नाम
और पढ़के उसे
दोनों रोएँ थोड़ी-थोड़ी देर ...
ये कविता बे-रंग ही होती
जो यूँ न रूठते तुम
और दिल महसूस न करता कि
तुम क्या हो मेरे लिए
क्या ये संभव है कि
लिखा जाए इक साझा सन्देश
इक पाती, इस रिश्ते के नाम
और पढ़के उसे
दोनों रोएँ थोड़ी-थोड़ी देर ...
No comments:
Post a Comment