Friday, March 15, 2013

काश मैं तुम्हारी बेटी होती...

काश मैं तुम्हारी बेटी होती
तो तुम
मुझे भी फ्रॉक पहनाते
चोटी बनाते
गोद में उठाते
मेरी अठखेलियों में खो जाते
मेरी नाराज़गियों पर
मुझे फुसलाते...बहलाते

अभी-अभी
मेरी आवाज सुनकर
माथे पे बिखरे बालों को
जिस तरह कानों के पीछे संवारा तुमने
और फिर अपने ही हाथों को चूम लिया
यकीन मानों इस इक पल में
ये ख्वाब बिल्कुल ही सच सा लगा

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