Saturday, December 8, 2012

फिर वही सुबह...

फिर वही सुबह
दो कप चाय...अखबार...रेडियो ...
कोई बातचीत नहीं हमारे बीच
लेकिन मौजूदगी का पूरा पूरा एहसास
हम नहीं बोलते
लेकिन सुबह बोलती है
तुम फोन पर बतियाते
मैं ख़ुद में उलझी

अपने-अपने कामों में मसरूफ हम
जैसे बगीचे में दो परिंदे चुपचाप
एक दूजे की चिंता में उतने ही डूबे

फिर वही सुबह है
एक कप चाय...अखबार...रेडियो...
परिंदों का चुप-गान सुनाई नहीं देता आज
ये अबोली सुबह नहीं भाती तुम बिन

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