तुम्हें हक़ है
कि तुम दिल दुखाओ
और दुखाओ
आज तुम न मानना
तब तक
जब तक तुम्हें मनाते-मनाते
मैं न उदास हो जाऊं
रुलाई न फूट पड़े मेरी
उफ्फ् ये नाउम्मीदी
खुद पे इतना भी ऐतबार नहीं
कि कह सकूं कि
अब गलती नहीं होगी
चलो यूँ मान लो
कि अब बहुत दिनों बाद होगी
जैसे आश्विन के बाद आता है सावन
कि तुम दिल दुखाओ
और दुखाओ
आज तुम न मानना
तब तक
जब तक तुम्हें मनाते-मनाते
मैं न उदास हो जाऊं
रुलाई न फूट पड़े मेरी
उफ्फ् ये नाउम्मीदी
खुद पे इतना भी ऐतबार नहीं
कि कह सकूं कि
अब गलती नहीं होगी
चलो यूँ मान लो
कि अब बहुत दिनों बाद होगी
जैसे आश्विन के बाद आता है सावन
कोई रूठ जाता है ...कोई मनाने लगता है! यह भी होता है कि मनाने वाला रूठ जाता है और जो रूठा हुआ होता है, वह मनाने लगता है..! अबोलेपन का कोई परदा एक आँसू, एक हिचकी या एक रुलाई से हिल जाता है..! जैसे हिलने को तैयार ही बैठा हो..! भुजाओं में फिर से जैसे सब-कुछ आ जाता है..! यही तो है जीवन..!
ReplyDeleteजीवन से भरपूर इस कविता को नमन..!
जी ...हौसला अफज़ाई का शुक्रिया बहुत ..:)
ReplyDelete:)
ReplyDeletewaah
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