एक ख़याल समंदर किनारे....
_________________
हवा में तैरते रहते हैं,
कुछ क़िस्से कुछ कहानियाँ
कुछ लोग लिखते हैं
समंदर किनारे कहानियाँ
और बग़ैर मिटाए
लौट आते हैं वापस
इस ख़याल से कि
लहरें मिटा ही देंगी उन्हें
वो अच्छा नहीं करते
क्यूंकि बादवक़्त होता यूँ है
कि ज़ोर लहरों का टूट जाता है
अनमिटा एक क़िस्सा छूट जाता है
और कुछ अलफ़ाज़ रह जाते हैं
ज़मीन और आसमान के दरमियाँ...शर्मिन्दा !
न हों शर्मिंदा कोई लफ्ज़ या हर्फ़
इसलिए अच्छा है अपने हाथों लिखे हर्फ़ों को
ख़ुद ही मिटा के वापस लौटा जाए
जो है उसे सीने में महफूज़ रखा जाए !
- अनिता सिंह
No comments:
Post a Comment