Tuesday, June 19, 2012


हाँ ! सच ही तो है
रूठकर तुमसे..
न रोने का
कभी न बात करने का
वादा करता है दिल
तुम्हें और खुद को समझाने के लिए
कि बगैर तुम्हारे भी खुश है ये
भीड़ में ठहाके भी लगाता है
नापसंद कपडे पहन कर
नई फिल्मों के गीत भी गाता है
दरअसल रूठकर तुमसे
सारे जग से रूठ जाता है यह
सबसे लड़ाई भी करता है
और सामानों की उठापटक भी
ये साबित करने की ज़िद में कि
तुम्हारे न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
खुद को सूरज की आंच में तपाता भी है
सूरत संवारने की जगह बिगाड़ता भी है
दोहराता है
सारी कड़वी बातें तुम्हारी
यकीन दिलाता है खुद को
तुमसे बुरा कोई नहीं
बल्कि कोई भी हो तुमसे तो अच्छा ही है
उस एक पल में सच मानो
तुम भी ऐसे ही तड़पो..रोओ, आहें भरो...
ऐसी मन्नतें मांगता है दिल

यूँ तो अक्सर भगवान् जी सारी मन्नतें मान लेते हैं
लेकिन पता नहीं क्यूं ये वाली पूरी नहीं करते
वैसे अच्छा ही करते हैं...
ये गुस्से में मांग ली गई मन्नत है न
भगवान् करे कभी पूरी न हो...
जैसे नहीं होतीं पूरी
किसी को भूल जाने की मन्नत....


- अनिता सिंह

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