Thursday, October 11, 2012

एक भी दिन....तुम बिन...



दिन ढला ऐसे
सांझ उतरी हो मन में जैसे
थककर नाराज़ मन भी
शिकायती हो गया

गहराती रात के साथ
शिकायतें भी
होने लगीं उदास

ढल चुकी है रात
आँखों से टपकती हुई
याचना लिए होठों पर
बची है सिर्फ़ बेबसी

देखा ना...जिया नहीं जाता
एक भी दिन...तुम बिन

No comments:

Post a Comment