Saturday, October 13, 2012

ओ! ज़िद्दी मासूम सी लड़की...

ओ! ज़िद्दी मासूम सी लड़की
क्या फिर पुकारा मुझको ?
पुकारा...या धमकाया...डराया मुझको
सर्दी से सुड़कती नाक
और पनीली आँखों को चमकाकर
एक अदृश्य गन पॉइंट मेरे पीछे टिकाकर

लगातार देती हो आदेश
ये करो..वो करो..अरे! अरे! ऐसे नहीं...वैसे
नहीं तो समझ लो
जी है ज़िन्दगी अपनी शर्तों पे अब तक
तुम कहाँ से ऐसे -
महीन अक्षरों वाली चेतावनी सी
मेरे मन में सितारा सी चमकती हो...

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