महज़ कविता लिखने के लिए
रोया नहीं जा सकता
लेकिन रो लेने के बाद
ज़रूर एक फ़लक...जो धुंधला सा था
अब साफ़ नज़र आता है....स्लेट सा
जिस पर तुम्हारी बूँदें रचती हैं शब्द
वो शब्द जो तुम्हारी रुलाई में फूट पड़ते हैं जिबरिश
जिनकी ध्वनि नहीं रचती कोई चित्र
लेकिन रचती है एक जहान
मेरे प्रेम का
( * जिबरिश = अगड़म बगड़म बोले गए शब्द / ध्यान की एक विधि )
मेरे प्रेम का
( * जिबरिश = अगड़म बगड़म बोले गए शब्द / ध्यान की एक विधि )
No comments:
Post a Comment