Monday, November 19, 2012

लघु-कथा / अनन्या



अनन्या आज रात चाँद देख रही थी। उसकी आँखों में चाँद तारों के सापेक्ष एक दुनिया मुस्कुराती है, जो हरी भरी धरती को देख कुछ सहम सी जाती  है।
दो चार लोग उसी हरी भरी दुनियां से हाथ हिलाते हैं। अनन्या ने चाहा कि वो लोग उसके इन चाँद तारों की दुनिया में यूँ ही कभी मेहमान बनकर आएं।
किसी को भी शामिल कर लेना अपने जहाँ में कितना आसान होता है, लेकिन  जाने क्यूँ घटी हुई दूरियां सौंदर्य मिटाने पे आमादा हो जाती हैं।
आते हुए पांवों के निशाँ पकड़कर कोई गुज़र क्यों नहीं जाता ?
एक राह जो थमी थी आज फिर दिखती है अनन्या  की आँखों में, उसी चाँद को देखते हुए आँखों में झिलमिला आए मोती के पीछे।

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