Wednesday, November 21, 2012

* लिखी जा रही कहानी का अंश...

अनिर्विनय !
हम्म ....नाम तो बहुत अच्छा है
…तो फिर पूरा नाम…! प्रियंवदा ने पूछा।
अनिर्विनय ही नाम है ठकुराइन। अवि ने हँसते हुए कहा
अरे ठीक ठीक बताओ ना ....सरनेम क्या है तुम्हारा? प्रियंवदा ने पूछा।
क्या कीजियेगा जानकर ठकुराइन..? चलिए हम शूद्र हैं ...अब कहिये दोस्ती रखनी है या ..??? कह कर मुस्कुराया अवि
उफ्फ... ओह ! तुम भी न अवि ... सर में दर्द हो जाएगा यूं तो पूछते-पूछते।... चलो कॉफ़ी पीने चलें।
शूद

्र के साथ कॉफ़ी पीजिएगा ठकुराइन ??? देखिएगा कहीं धर्म भ्रष्ट न हो जाए आपका।... कहकर जोर से ठहाका लगाया अवि ने।
धर्म तो भ्रष्ट होगा ही अवि ....लेकिन हमारा नहीं ...तुम्हारा ... समझे?
हम ठहरे नॉन वेजिटेरियन ...और तुम तो लहसुन प्याज भी नहीं खाते ...है ना??
प्रियंवदा मुस्कुरा रही थी
उफ्फ ... उफ्फ्फ्फ़ ...ये आपने क्या कह दिया ठकुराइन ??
वही जो तुमने सुना ...लेकिन वो नहीं, जो समझा तुमने... इतना उफ्फ करने की ज़रुरत नहीं ....हम तो सिर्फ जूठी कॉफ़ी पिलाने की बात कर रहे थे।... प्रियंवदा ने कहा।
जी ठकुराइन जी ...हम भी तो यही समझ कर उफ्फ कर रहे थे।... आपने कुछ और सोच लिया क्या?? ... कहकर छेड़ा अवि ने
प्रियंवदा झेंप गई ....अवि ठहाके लगा रहा था।

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