Monday, November 19, 2012

शरद चंद्र...

सुनो चंद्रमा शरद के
यूँ न मुस्कुराया करो तुम कि
तुम्हारी मुस्कान में बरसती हैं
जो किरणें शीतल
मुझ तक आकर वही किरणें
तीर हो जाती हैं और
मैं लेट जाती हूं अंतरिक्ष में
जैसे शरशैया पर बिरहन...

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