यूँ तो उपनयन एक संस्कार है हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में से। लेकिन यहाँ जिसका ज़िक्र है वो आर्ट ऑफ लीविंग के बेसिक कोर्स की एक प्रकिया है। हमारे शहर में भी अक्सर अलग-अलग धार्मिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न आयोजन किये जाते हैं।हमारे मित्रों के दो गुट हैं इस मुद्दे पर।एक तो घोर विरोधी हैं इसके। उनका कहना है की धर्म के ठेकेदार हैं सब और ये तो आध्यात्मिकता का व्यवसायीकरण है। और दूसरे ग्रुप
का कहना है कि सारे
ऐसे नहीं हैं और बहुत कुछ सीखने को मिलता है ऐसे शिविरों में। और कुछ नहीं
तो कम से कम बचपन से जो अच्छी बातें सिखाई गयी थीं, उनका रिवीज़न ही हो
जाता है जो आज की भागमभाग भरी ज़िन्दगी में बहुत ज़रूरी है, खुद को रीचार्ज
करने के लिए। अच्छी-अच्छी बाते खुद को और औरों को याद दिलाते रहना चाहिए।
ख़ैर ...
अपने मित्रों की ज़िद पर मैंने आर्ट ऑफ लीविंग के बेसिक कोर्स का वो शिविर अटेंड किया। दोस्तों के साथ ग्रुप में कोई भी काम साथ मिलकर करने का अपना मज़ा है। सात दिवसीय इस शिविर में काफी चीज़ें बताई गयीं। मुझे वहां जाते हुए, चैतन्य होकर हर चीज़ महसूस करते हुए बहुत अच्छा लग रहा था।मैंने खुद को पूरी तरह योग गुरु पर छोड़ दिया था जो शिविर करवा रहे थे।जो कुछ कहा जाता मैं करती जाती ।और ऑबज़र्व करना मेरा स्वभाव है सो देखा भी करती सभी को। पूरे शिविर में दो बच्चियों ने ध्यान खींच रखा था मेरा। ब-मुश्किल चौदह-पन्द्रह वर्ष उम्र रही होगी उनकी। और माता-पिता के कहने पर शिविर में आईं थीं। हर प्रक्रिया में खेलने लगती थीं । ज़ाहिर है कई बार ऊबती भी थीं।बीच-बीच में योग गुरु की डांट पड़ती उन्हें।कभी -कभी योग गुरु की आवाज़ सुनाई देती- पूजा आखें बंद करो। दोनों बच्चियों में से पूजा ज्यादा चंचल थी। इक पल भी शांत नहीं बैठ पाती थी।
एक दिन शिविर में उपनयन की प्रक्रिया करवाई गई। इसमें जितने लोग थे उन्हें दो ग्रुप में बाँट कर आमने सामने मुंह करके बिठा दिया गया।जैसे खाने की पंगत में बैठते हैं, सिर्फ बीच में गैप नहीं रखा गया था। दोनों बच्चियां एक दूसरे के आमने-सामने बैठ गयीं, ठीक मेरे बगल में। सबसे आँखें बंद करने आग्रह किया गया।बांसुरी पर राग शिवरंजनी मद्धम मद्धम बज रहा था। और योग गुरु की कॉमेंट्री चल रही थी। उनकी आवाज़ आई- धीमे-धीमे आँखें खोलने का आग्रह किया गया। योग गुरु बोल रहे थे- जो शक्स आपके सामने बैठा है,उसका हाथ अपने हाथों में लीजिये और अपलक उसकी आँखों में देखते हुए महसूस कीजिये कि इस कायनात में यही वो शख्स है जिससे आप सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं,यही आपका ईश्वर है।आप प्रेम में डूबे हुए हैं। पूजा मेरी सामने वाली पंक्ति में मेरे पार्टनर के बगल में बैठी थी। वो ईमानदार कोशिश करती अपनी पार्टनर की आँखों में अपलक निहारते हुए प्रेम महसूस करने की लेकिन हंस पड़ती।आस-पास के लोग डिस्टर्ब हो रहे थे।मैं पूरी शिद्दत से प्रक्रिया पूरी करना चाहती थी, लेकिन बेचारी पूजा और उसकी हंसी...योग गुरु की आवाज़ आई कोई हंसेगा नहीं ,लेकिन लगता जैसे किसी ने गुदगुदी कर दी है पूजा को। हंसी रोकने में दोनों बच्चियां पूरी तरह नाकामयाब रहीं थी। मैंने सहज एक नज़र देखा पूजा को वो सहम कर एक बार फिर न हंसने की कोशिश करने लगी।और तभी योग गुरु का आदेश हुआ की एक पंक्ति के लोग ज्यूँ के त्यूं अपनी जगह पर बैठे रहें और सामने वाली पंक्ति के लोग अपनी जगह से थोड़ा सा अपनी दाहिनी ओर खिसकें।आज्ञा का पालन किया गया।अब पार्टनर बदल गए थे । अब मैं और पूजा आमने-सामने थे।अब वो थोड़ी सी शांत थी।योग गुरु ने वही प्रक्रिया दोहराने का आदेश दिया। हमने एक दूसरे का हाथ थाम रखा था।उसके छोटे-छोटे मुलायम हाथ मेरे हाथों में थे।योग गुरु की आवाज़ आई -एक दूसरे की आँखों में आँखें डालिए ...अपलक एक दूसरे को निहारते हुए महसूस कीजिये कि इस दुनिया में यही वो इंसान है जिसके प्यार में आप पूरी तरह डूबे हुए हैं।मैंने अपलक अपनी निगाहें पूजा की आँखों पर टिका दीं। वो बेहद असहज महसूस कर रही थी, हंसी रोकने की कोशिश में उसका चेहरा लाल हुआ जा रहा था, उसने अपना सर झुका दिया और नीचे ज़मीन पर देखने लगी। साफ़ दिखाई दे रहा था की वो अपनी हंसी छुपाने की कोशिश कर रही थी,लेकिन हंसी रोक नही पा रही थी।
फिर मेरे मन में ख़याल आया कि बेचारी बच्ची को इस परेशानी से बाहर निकाला जाए, सो मैंने अपनी आँखें मूँद लीं और राग शिवरंजनी में बांसुरी पर बजती धुन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।यूँ भी संगीत से बहुत गहरा लगाव है मुझे।और बांसुरी सुनते हुए ईश्वर कृपा को, जीवन में हुई हर अच्छी बात को याद करने लगी। मन आभार के भाव से भर गया था।जीवन में घटित हर अच्छी बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हुए मन द्रवित हो आया था और दो बूँद आंसू आँखों के कोरों से निकल कर मेरी गालों पर ढुलक आए थे।मेरी तन्द्रा तब टूटी जब मैंने पाया कि पूजा ने मुझे अपने गले से लगाकर बहुत ज़ोरों से भींच लिया है।और हल्के- हल्के मेरी पीठ पर थपकियाँ दे रही है। उसकी आँखें भीगी हुई थीं, उसने जुबां से तो कुछ नहीं कहा लेकिन मेरा चेहरा उसने अपने दोनों हथेलियों में थामा हुआ था और अपलक मुझे देख रही थी मानो कह रही हो यूँ ना रोइए प्लीज़ ...सब ठीक हो जाएगा। मैं अवाक उसे अपलक देखती रह गई थी। पता नहीं नियमतः उस प्रक्रिया में क्या होना चाहिए था लेकिन मैंने महसूस किया कि हमारा उपनयन तो हो गया था।शायद सच्चा ''उपनयन''।
अपने मित्रों की ज़िद पर मैंने आर्ट ऑफ लीविंग के बेसिक कोर्स का वो शिविर अटेंड किया। दोस्तों के साथ ग्रुप में कोई भी काम साथ मिलकर करने का अपना मज़ा है। सात दिवसीय इस शिविर में काफी चीज़ें बताई गयीं। मुझे वहां जाते हुए, चैतन्य होकर हर चीज़ महसूस करते हुए बहुत अच्छा लग रहा था।मैंने खुद को पूरी तरह योग गुरु पर छोड़ दिया था जो शिविर करवा रहे थे।जो कुछ कहा जाता मैं करती जाती ।और ऑबज़र्व करना मेरा स्वभाव है सो देखा भी करती सभी को। पूरे शिविर में दो बच्चियों ने ध्यान खींच रखा था मेरा। ब-मुश्किल चौदह-पन्द्रह वर्ष उम्र रही होगी उनकी। और माता-पिता के कहने पर शिविर में आईं थीं। हर प्रक्रिया में खेलने लगती थीं । ज़ाहिर है कई बार ऊबती भी थीं।बीच-बीच में योग गुरु की डांट पड़ती उन्हें।कभी -कभी योग गुरु की आवाज़ सुनाई देती- पूजा आखें बंद करो। दोनों बच्चियों में से पूजा ज्यादा चंचल थी। इक पल भी शांत नहीं बैठ पाती थी।
एक दिन शिविर में उपनयन की प्रक्रिया करवाई गई। इसमें जितने लोग थे उन्हें दो ग्रुप में बाँट कर आमने सामने मुंह करके बिठा दिया गया।जैसे खाने की पंगत में बैठते हैं, सिर्फ बीच में गैप नहीं रखा गया था। दोनों बच्चियां एक दूसरे के आमने-सामने बैठ गयीं, ठीक मेरे बगल में। सबसे आँखें बंद करने आग्रह किया गया।बांसुरी पर राग शिवरंजनी मद्धम मद्धम बज रहा था। और योग गुरु की कॉमेंट्री चल रही थी। उनकी आवाज़ आई- धीमे-धीमे आँखें खोलने का आग्रह किया गया। योग गुरु बोल रहे थे- जो शक्स आपके सामने बैठा है,उसका हाथ अपने हाथों में लीजिये और अपलक उसकी आँखों में देखते हुए महसूस कीजिये कि इस कायनात में यही वो शख्स है जिससे आप सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं,यही आपका ईश्वर है।आप प्रेम में डूबे हुए हैं। पूजा मेरी सामने वाली पंक्ति में मेरे पार्टनर के बगल में बैठी थी। वो ईमानदार कोशिश करती अपनी पार्टनर की आँखों में अपलक निहारते हुए प्रेम महसूस करने की लेकिन हंस पड़ती।आस-पास के लोग डिस्टर्ब हो रहे थे।मैं पूरी शिद्दत से प्रक्रिया पूरी करना चाहती थी, लेकिन बेचारी पूजा और उसकी हंसी...योग गुरु की आवाज़ आई कोई हंसेगा नहीं ,लेकिन लगता जैसे किसी ने गुदगुदी कर दी है पूजा को। हंसी रोकने में दोनों बच्चियां पूरी तरह नाकामयाब रहीं थी। मैंने सहज एक नज़र देखा पूजा को वो सहम कर एक बार फिर न हंसने की कोशिश करने लगी।और तभी योग गुरु का आदेश हुआ की एक पंक्ति के लोग ज्यूँ के त्यूं अपनी जगह पर बैठे रहें और सामने वाली पंक्ति के लोग अपनी जगह से थोड़ा सा अपनी दाहिनी ओर खिसकें।आज्ञा का पालन किया गया।अब पार्टनर बदल गए थे । अब मैं और पूजा आमने-सामने थे।अब वो थोड़ी सी शांत थी।योग गुरु ने वही प्रक्रिया दोहराने का आदेश दिया। हमने एक दूसरे का हाथ थाम रखा था।उसके छोटे-छोटे मुलायम हाथ मेरे हाथों में थे।योग गुरु की आवाज़ आई -एक दूसरे की आँखों में आँखें डालिए ...अपलक एक दूसरे को निहारते हुए महसूस कीजिये कि इस दुनिया में यही वो इंसान है जिसके प्यार में आप पूरी तरह डूबे हुए हैं।मैंने अपलक अपनी निगाहें पूजा की आँखों पर टिका दीं। वो बेहद असहज महसूस कर रही थी, हंसी रोकने की कोशिश में उसका चेहरा लाल हुआ जा रहा था, उसने अपना सर झुका दिया और नीचे ज़मीन पर देखने लगी। साफ़ दिखाई दे रहा था की वो अपनी हंसी छुपाने की कोशिश कर रही थी,लेकिन हंसी रोक नही पा रही थी।
फिर मेरे मन में ख़याल आया कि बेचारी बच्ची को इस परेशानी से बाहर निकाला जाए, सो मैंने अपनी आँखें मूँद लीं और राग शिवरंजनी में बांसुरी पर बजती धुन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।यूँ भी संगीत से बहुत गहरा लगाव है मुझे।और बांसुरी सुनते हुए ईश्वर कृपा को, जीवन में हुई हर अच्छी बात को याद करने लगी। मन आभार के भाव से भर गया था।जीवन में घटित हर अच्छी बात के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हुए मन द्रवित हो आया था और दो बूँद आंसू आँखों के कोरों से निकल कर मेरी गालों पर ढुलक आए थे।मेरी तन्द्रा तब टूटी जब मैंने पाया कि पूजा ने मुझे अपने गले से लगाकर बहुत ज़ोरों से भींच लिया है।और हल्के- हल्के मेरी पीठ पर थपकियाँ दे रही है। उसकी आँखें भीगी हुई थीं, उसने जुबां से तो कुछ नहीं कहा लेकिन मेरा चेहरा उसने अपने दोनों हथेलियों में थामा हुआ था और अपलक मुझे देख रही थी मानो कह रही हो यूँ ना रोइए प्लीज़ ...सब ठीक हो जाएगा। मैं अवाक उसे अपलक देखती रह गई थी। पता नहीं नियमतः उस प्रक्रिया में क्या होना चाहिए था लेकिन मैंने महसूस किया कि हमारा उपनयन तो हो गया था।शायद सच्चा ''उपनयन''।
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