उसे चांद चाहिये
चांद तारों की जगमग दुनिया चाहिये
मुस्कुराती हुई और हरी-भरी धरती को देख
खामोश खिलखिलाती हुई दुनिया में बैठी है वह
जहां चांदनी की ओढ़नी में
रोशनी के घूंघट से उसे दिखती हैं
धरती पर कुछ छवियां पास बुलाती हुईं
लेकिन वह नहीं चाहती वहां जाना
चाहती है वहीं से कोई आये उसके रौशन जहां में
लेकिन कहां मुमकिन होता है हदों को तोड़कर
दो दुनियाओं का इस तरह मिलना
बस इसीलिये राह तकती उसकी आंखों में
हरदम झिलमिलाते हैं
सितारों की तरह जगमगाते हुए क़तरे अश्कों के...
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